नव वर्ष की नयी रंग

  • Thursday 5 January 2012
  • SATISH KUMAR




  • सबसे पहले तो इस ब्लॉग जगत में सभी को मेरी तरफ से नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें ! 

    एक ब्लॉग बना उसपे कुछ अपने पसंद के आलेख सजाने की चाहत तो बहुत दिनों से थी, और उसे इस वर्ष पूरा करने को मैंने ब्लॉग तो बना ली किन्तु यह सोच कर परेशान था की लिखूं क्या ? तभी ऐहसास हुआ क्यूँ न इस वर्ष की उस पहली घटना के बारे में लिखा जाये जो मेरे दोस्त “मनीष” के साथ घटी !

    १ जनवरी, २०१२ ! आज मैं अपने एक दोस्त के साथ घूमने को सुबह से ही हॉस्टल से बाहर था, और जब शाम को वापस आया तो वहाँ कोई नही था ! मार्टिन कूपर के द्वारा अबिष्क्रित साधन से वार्तालाप के उपरांत हमे यह ज्ञांत हुआ के वे सभी भी बाहर ही भ्रमण पे निकले हैं और यह भी जानकारी मिली की मनीष की आवशयकताओं की पूर्ति हेतु एक और मोबाइल खरीद रहे हैं ! 

    कुछ देर बाद जब उन सभी का आगमन हुआ तो मनीष के पुलकित होने की कोई सीमा न थी वैसे तो उस सेल की कीमत सिर्फ ५,००० ही थी परन्तु यह उसके लिए बहुत खुशी की बात थी क्यूंकि इसे उसने अपनी खुद की कमाई से ख़रीदा था उसके रोजगार प्राप्त होने के ४ महीने के बाद उसने इस सेल को खरीदने का फैसला किया था ! 

    उस दिन देर रात तक वो उस सेल के साथ व्यस्त रहे कभी उसके चित्र लेने की उपकरण का उपयोग कर खूब पुलकित हो जाते तो कभी उसमे लगे ४ – ४ स्पीकर को खूब जोर – जोर से बजा कर खुशी के मारे उछल पड़ते, और जब संगीत के लिए जगह की कमी हुयी तो उन्होंने अपने दोस्त की स्मृति पेटी का प्रयोग किया और सभी अपने पसंद के संगीत से उस स्मृति पेटी को परिपूर्ण कर निंद्रा के लिए प्रस्थान किया और फिर हम सभी भी सो गये !

    दूसरे दिन (२ जनवरी) सुबह – सुबह मेरे कमरे के दरबाजे पे एक दस्तक हुयी, यही कोई ९ बजे होंगे – परन्तु रात को देर से सोने की बजह से मेरी आँख जरा देर से खुली लेकिन फिर किसी तरह दरबाजा खोला तो देखा वहां हमारे १ जनवरी के हीरो मनीष विद्यमान थे कुछ समय पश्चात वे धीरे से अपने पैर आगे बढ़ा मेरे कमरे में दाखिल हुए !

    मैं – और भाई क्या हाल है आज सुबह – सुबह इधर कैसे !
    मनीष – अरे यार जानते हो .. ( तभी मैं उसे रोक कर बोल पड़ा)
    मैं – नही, बताओ तो जाने न !
    मनीष – वो मोबाइल चोरी हो गया !
    मैं – अच्छा कैसे , कहाँ रखे थे !
    मनीष – मेरे पाकेट में ही था !
    मैं – और , पाकेट से चोरी हो गया तुम्हे पता भी न चला !

    तभी मेरा रूम पार्टनर बोल उठा “यार सच में ये अनुभव न बहुत ही बुरा होता है ! बताओ बेचारा कल ही खरीद कर लाया था और आज ....” !

    मैं – तो अब ?
    मनीष – पोलिश चौकी चलते हैं, साथ में चलो !

    फिर हम भी तैयार होने लगे और मनीष जी दरखास्त लिखने में व्यस्त हो गए ! कुछ समय उपरांत हम सभी पोलिश चौकी की ओर प्रस्थान किये ! 

    चौकी पहुँच कर हम वहाँ के एक पोलिश से मिले और उन्हें सेल चोरी होने की घटना बताई फिर उन्होंने मनीष से पूछताछ की ....

    पोलिश – तो तुम्हारा सेल कहाँ चोरी हुआ ?
    मनीष – सर, सिल्क बोर्ड बस स्टाप पे !
    पोलिश – और चोरी हुयी कैसे, तुमने उस चोर को देखा उसे पकड़ा ?
    मनीष – नहीं सर, वह बहुत तेजी से मेरे पाकेट से सेल निकाल का चलती बस से कूद गया मैं भला उसे कैसे देख पाता या पकड पाता |
    पोलिश – तो फिर इस दरखास्त में तुमने सेल के चोरी के बारे मैं क्यूँ लिखा है, तुम यह लिखो की तुम्हारी सेल खो गयी है !
    मनीष – परन्तु सर, ये तो चोरी है न ?
    तभी वहां एक दूसरे पोलिश का आगमन होता है ......
    दूसरा पोलिश – क्यूँ भाई, क्या हो गया ?
    मनीष – सर, मेरी सेल चोरी हो गयी है और उसी के लिए हम दरखास्त दे कर परिवाद करने आये हैं !
    दूसरा पोलिश – ओ, ठीक है लाओ जरा अपना दरखास्त अभी इसका परिवाद कर देता हूँ ! अरे ये क्या , तुमने तो यहाँ लिखा है की तुम BTM  से गाड़ी में चले थे और BTM तो हमरे चौकी के अंतर्गत आता ही नही है तुम्हें इसके लिए BTM पोलिश चौकी जाना चाहिए !
    मनीष – परन्तु सर, मेरे मोबाइल की चोरी यहाँ सिल्क बोर्ड में हुयी है और यह तो इस पोलिश चौकी के अंतर्गत आता है न ?
    दूसरा पोलिश – हाँ यह तो आता है परन्तु तुम्हें परिवाद वोहीं करना होगा जहाँ से तुमने अपनी यात्रा आरम्भ की थी !
    मनीष – किन्तु सर ....
    दूसरा पोलिश – किन्तु – परन्तु कुछ नही चलो अब जाओ यहाँ से हम इसमें कुछ नही कर सकते !

    इसके बाद फिर हमने BTM पोलिश चौकी के लिए प्रस्थान किया ! रास्ते में दोस्तों ने समझाया की क्या करोगे, इस परिवाद – बरिवाद में कुछ नही होना है ! तब जाकर इस राज का खुलासा हुआ की परिवाद की एक प्रतिलिपि जरुरी है क्यूंकि संगीता मोबाइल स्टोर वाले ने इस मोबाइल के साथ एक फ्री बीमा भी दी है और उस बीमा पे दावों के लिए परिवाद की एक प्रतिलिपि का होना अतिआव्स्यक है !

    तो फिर दोस्तों ने समझाया की इस बार पोलिश चौकी में यात्रा आरम्भ की जगह और चोरी की जगह दोनों ही BTM बताना नहीं तो फिर से वे हमें सिल्क बोर्ड भेज देंगे, और मनीष ने ऐसा ही किया तब जाकर पोलिश ने परिवाद तो किया परन्तु परिवाद मोबाइल के चोरी की नही उसके खो जाने की हुयी !

    इसके बाद फिर हम संगीता मोबाइल स्टोर पहुंचे वहाँ सारी घटना बताने के बाद संगीता वालों ने ४ – ५ पेज का एक प्रपत्र दिया जिसके परिपूर्ति में अभी मनीष लगे ही थे की संगीता वालों की नजर पोलिश चौकी से प्राप्त पर्ची पे गयी और बोल खड़े हुए “माफ़ कीजिये आपके द्वारा बीमा पे दावा नही किया जा सकता क्यूंकि यह पर्ची यह बताती है की आपका मोबाइल खो गयी है उसकी चोरी नही हुयी है” ! इस प्रपंच से बचने के लिए मनीष ने फिर यहाँ भी अपनी कहानी १ जनवरी की शाम से शुरू की और जब कुछ देर बाद कहानी खत्म हुयी तो संगीता वाले ने कहा ठीक है तो आप एक काम करो इस प्रपत्र को पूर्ण कर इसके निचे पोलिश चौकी का मोहर लगवा लो ! अब फिर से पोलिश चौकी जाने का सर दर्द लेने को कोई तैयार न था ! अब तक मध्यान भोजन का वक्त को चला था सो हम पहले हॉस्टल चले आये ! 

    भोजन के उपरांत हम पुनः जाने को सज्जित हुए और उसी वक्त सभी दोस्त तरह – तरह के सलाह देने लगे ! कारण बीमा दावा करने को उसे पुनः ३०० रु. खर्च करने थे और मोबाइल के पूर्ण कीमत का २५ प्रतिशत अर्थात लगभग १३०० रु. भी देने पड़ते और इन सब में अब तक १५० रु. खर्च हो चुके थे तथा आगे और २०० रु. खर्च होने की संभाबना थी, इसलिए सब लोग समझाने लगे की इस प्रपंच को छोडो और जितने पैसे तुम्हारे खर्च होने हैं उतने में ही कोई और दूसरा मोबाइल खरीद लो ! 

    परन्तु इन सभी बातों का मनीष पे कोई असर न हुआ और उसने कहा “चाहे जो भी हो, एक बार कोशिश करने में हर्ज ही क्या है”, और फिर सभी पुनः जाने लगे !

    अंततः हम पुनः पोलिश चौकी पहुंचे और पोलिश से वार्तालाप का शुभारंभ किया परन्तु लाख कोशिशों के बाबजूद मनीष पोलिश को यह समझा न पाया की उसकी मोबाइल चोरी हुयी है या फिर पोलिश समझना ही नही चाहता था, बात चाहे जो भी हो परन्तु मनीष का परिवाद चोरी के रूप में नही हो पाया और फिर वैसे ही हम पुनः संगीता मोबाइल पहुंचे तो उन्होंने कहा इस पर्ची से बीमा दावा तो नही हो सकता लेकिन फिर भी यदि आप कोशिश करना चाहें तो ये रहा बीमा मण्डली का पता आप चाहो तो उनसे जाकर बात कर सकते हो ! अब समझ नही आ रहा था की क्या करें यदि बीमा दावा नही किया जा सकता तो फिर जाने से क्या फायदा यही सब सोचते हुए हम सभी ऑटो रिक्शा में सवार हो निकल पड़े जाने को बीमा मण्डली !

    आक्समात हमें एक आवाज सुनाई दी “भाड में गया मोबाइल और भाड में गया इंशोरेंस, साला ये – यही है अपना सिस्टम” उसके बाद हम देखते हैं सारे कागज पत्र को मनीष अपने हाथों से टुकड़े – टुकड़े कर रिक्शा से बाहर राजमार्ग पे उड़ा देता है और फिर एक साथ सबके मुखों से एक ही बात निकलती है “भईया अपना रिक्शा घूमा लो और फिर हम एक दूसरे मोबाइल दुकान पे रुके और फिर २ – ३ दुकान घूमने के बाद मनीष ने भी एक नया माइक्रोमैक्स का सेल खरीद लिया ! कुछ ने कहा चलो संगीता से ही लेते हैं परन्तु अब मनीष को अपने मोबाइल की बीमा कराने की जरुरत महशुस नही होती इसलिए वो दूसरे दुकान से ही अपना मोबाइल खरीदना उचित समझा और वैसा ही किया भी !   

    इतने सब में मनीष और हम सब के दिमाग में कुछ सबाल घूमते रहे और अंततः इसका हमें जो जबाब मिला वो भले ही इस भारत सरकार के सिस्टम के लोगों के लिए अच्छा हो परन्तु एक आम आदमी के लिए बहुत निराशा जनक है !

    अब आज फिर रात हो गयी हम सब सोने जा रहे हैं और कल (१ जनवरी) की तरह आज (२ जनवरी) फिर एक अच्छा सा समपूरक मनीष के २ जनवरी वाले नए मोबाइल के लिए, किसी ने कहा “वैसे ये भी अच्छा मोबाइल है, जब किस्मत में हो माइक्रोमैक्स तो फिर कहाँ से मिलेगा नोकिया” !

    मेरी तरफ से ढेर सारी सुभकामनाये मनीष के नए मोबाइल के लिए |

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